Thursday, 9 April 2020

पोक्सो (POCSO)

चर्चा का कारण

हाल ही में राज्यसभा ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 {POCSO (Amendment) Bill, 2019} को मंजूरी प्रदान की है। यह विधेयक ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012’ में संशोधन करता है।

यह अधिनियम यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों के संरक्षण का उपबंध करता है।

परिचय

बचपन सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि कई कोरे पन्नों को रंग-बिरंगी यादों के साथ एक बस्ते में सजाये रखने का नाम है। जब हम किसी बच्चे को हँसते, खेलते और खिलखिलाते देखते हैं तो हमारा मन खुशी से भर जाता है और जीवन की एक नई राह दिखाई देने लगती है। साथ ही लगता है कि एक बार फिर से बचपन में जाकर उन शरारतों को दोहराया जाये। दरअसल प्रत्येक बच्चे को खुलकर जीने का अधिकार है लेकिन जब समाज और अपनों के बीच में ही मौजूद कुछ लोग अपनी गंदी हरकतों से मासूम और निर्दोष बच्चों से खिलवाड़ करते हैं और उनका यौन शोषण करते हैं तो ये नाजुक फूल खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं। गौरतलब है कि जीवनभर उन्हें उन घिनौनी और कड़वी यादों के साये में जीवन व्यतीत करना पड़ता है। ऐसा देखा गया है कि कई बार तो पीडि़त बच्चे इस अवसाद के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। बच्चों के यौन शोषण और उत्पीड़न को रोकने के लिए वर्ष 2012 में पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) लागू किया गया, परंतु इससे वांछित परिणाम न मिलने के कारण इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए पॉक्सो संशोधन विधेयक, 2019 लाया गया है। इस विधेयक में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।

बच्चों के खिलाफ यौन अपराध और बलात्कार के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए केन्द्र सरकार ने 1023 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित करने को मंजूरी दी है। अभी तक 18 राज्यों ने ऐसी अदालतों के गठन के लिए अपनी सहमति जतायी है।

पृष्ठभूमि

देश में 2012 से पहले बाल यौन शोषण पर कोई स्पष्ट कानून नहीं था, जिसकी वजह से बच्चों से जुड़े मामलों की कार्रवाई भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत बलात्कार की धारा 375, महिला की गरिमा का हनन धारा 354 और अप्राकृतिक यौन अपराध धारा 377 जैसी धाराओं के अंतर्गत की जाती थी। यह कानून बच्चों को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया थी।

वर्ष 2013 से पहले बलात्कार की परिभाषा अलग थी, उदाहरणस्वरूप पहले केवल पुरुष जननांग द्वारा जबरन या असहमति से किया गया संभोग ही बलात्कार कहलाता था। इस प्रकार महिला या बच्ची की योनि में अन्य अंग या वस्तु डालना बलात्कार की श्रेणी में शामिल नहीं था। इस मामले के बाद महिला और बाल अधिकार संस्थाओं ने कानून बदलने की माँग की। वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से ऐसे मामलों को देखते हुए कहा कि बाल यौन शोषण के मुद्दे को हल करने के लिए बलात्कार की परिभाषा को बदलना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संसद को इस पर विशेष कानून बनाना चाहिए।

भारत ने 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार संविदा को स्वीकृति देते हुए तीन कानून पारित किए थे-

  • किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
  • बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005
  • यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो एक्ट)

संशोधित विधेयक की आवश्यकता क्यों?

इस विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि देश में बाल यौन अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जाने की सख्त आवश्यकता है। इसलिए विभिन्न अपराधों के लिए सजा में इजाफे की खातिर मूल कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। इससे अपराधियों में भय पैदा होगा और बालकों की सुरक्षा और गौरवपूर्ण बचपन सुनिश्चित हो सकेगा।

गौरतलब है कि मूल कानून में बाल यौन अपराधों की प्राथमिकी दर्ज होने में 2 महीने के भीतर जाँच पूरी करने और 1 साल के भीतर मुकदमा पूरा करने का प्रावधान है। सरकार ने यौन अपराधियों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस तैयार किया है। इसके अंतर्गत 6,20,000 अपराधी हैं। अगर कोई ऐसे व्यक्तियों को रोजगार पर रखता है तो संबंधित व्यक्ति के बारे में इस डाटा बेस से जानकारी लेने में मदद मिलेगी।

पॉक्सो अधिनियम, 2012

पॉक्सो अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन अपराधों, यौन शोषण और अश्लील सामग्री से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। इसका उद्देश्य बच्चों के हितों की रक्षा करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत बच्चे को 18 साल की कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और हर स्तर पर बच्चों के हितों और उनके कल्याण को सर्वाेच्च प्राथमिकता देते हुए उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित किया गया है। यह कानून लैंगिक समानता पर आधारित है।

इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है।

यह सर्वविदित है कि स्कूल, पड़ोस, ट्यूशन और कई बार घर के अंदर बच्चों के साथ वो घिनौना व्यवहार होता है जिसका दर्द एक मासूम बच्चा जीवन भर महसूस करता है। बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण और जघन्य अपराध के मामलों ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया और इसलिए 2012 में सख्त कानून लाया गया। बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों को रोकने के लिए बालकों का यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम 2012 यानी POCSO Act लागू किया गया। भारत में बाल यौन शोषण के फैलाव का अंदाजा कुछ सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सर्वेक्षणों एवं रिपोर्टों से लगाया जा सकता है। भारत सरकार की सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2006 के अनुसार भारत में 53.22 फीसदी से ज्यादा बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन शोषण होता है।

इनमें से 50 फीसदी मामलों में शोषण परिचित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति के द्वारा किया जाता है जिस पर बच्चा विश्वास करता है या जिसका बच्चे के ऊपर प्रभाव होता है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष के अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि भारत में हर 3 में से 1 बच्चा बलात्कार का शिकार होता है और लगभग प्रत्येक वर्ष 7200 से ज्यादा बच्चों व शिशुओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। वर्ष 2013 में ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch) की रिपोर्ट ‘ब्रेकिंग द साइलेंस- चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज इन इंडिया’ ने यह बताया कि 2001 से 2011 के बीच भारत में बाल यौन शोषण के मामलों में 336 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साथ ही हमारे समाज में बच्चों के साथ यौन शोषण बड़े पैमाने पर हो रहा है। आँकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में बाल यौन शोषण किसी विशेष उम्र, लिंग, समुदाय, जाति वर्ग या धर्म में सीमित नहीं है। यह सभी जगह एक समान रूप से फैला हुआ है।

संशोधित विधेयक के प्रमुख प्रावधान

पेनेट्रेटिव यौन हमलाः इस एक्ट के अंतर्गत अगर किसी व्यक्ति ने (i) किसी बच्चे के वेजाइना, मुँह, यूरेथ्रा या एनस में अपने पेनिस को डाला (पेनेट्रेट किया) है, या (ii) वह बच्चे से ऐसा करवाता है, या (iii) बच्चे के शरीर में कोई वस्तु डालता है, या (iv) अपना मुँह बच्चे के शरीर के अंगों को लगाता है, तो उसे ‘पेनेट्रेटिव यौन हमला’ कहा जाता है। ऐसे अपराधों के लिए सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इस बिल में न्यूनतम सजा को सात से दस वर्ष तक किया गया है। इसके अतिरित्तफ़ इस बिल में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला करता है तो उसे 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है।

गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमलाः इसके अंतर्गत पुलिस अधिकारी, सशस्त्र सेनाओं के सदस्य या पब्लिक सर्वेंट बच्चे पर यदि पेनेट्रेटिव यौन हमला करते हैं तो उसे ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला’ माना जाएगा। साथ ही इसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जहाँ अपराधी बच्चे का संबंधी हो, या हमले से बच्चे के सेक्सुअल ऑर्गन्स घायल हो जाएँ या बच्ची गर्भवती हो जाए इत्यादि। बिल गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले की परिभाषा में दो आधार और जोड़ता है। इनमें (i) हमले के कारण बच्चे की मौत और (ii) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया यौन हमला शामिल है।

वर्तमान में गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले में 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। इस बिल में न्यूनतम सजा को दस वर्ष से 20 वर्ष और अधिकतम सजा को मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।

गंभीर यौन हमलाः यदि कोई व्यक्ति पेनेट्रेशन के बिना किसी बच्चे के वेजाइना, पेनिस, एनस या ब्रेस्ट को छूता है तो ‘गंभीर यौन हमले’ में शामिल माना जाएगा, जिनमें अपराधी बच्चे का संबंधी होता है या जिनमें बच्चे के सेक्सुअल ऑर्गन्स घायल हो जाते हैं, इत्यादि। इस बिल में गंभीर यौन हमले में दो स्थितियों को और शामिल किया गया है। इनमें (i) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला, और (ii) जल्दी यौन परिपक्वता लाने के लिए बच्चे को हार्मोन या कोई दूसरा रासायनिक पदार्थ देना या दिलवाना शामिल है।

पोर्नोग्राफिक उद्देश्यः इस एक्ट के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति यौन सुख पाने के लिए किसी प्रकार के मीडिया में बच्चे का इस्तेमाल करता है तो वह पोर्नोग्राफिक उद्देश्य के लिए बच्चे का इस्तेमाल करने का दोषी पाया जाएगा। इस एक्ट में उन लोगों को भी सजा देने का प्रावधान किया गया है, जो पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने के दौरान उन पर यौन हमला करते हैं।

पोर्नोग्राफिक सामग्री का स्टोरेजः इस एक्ट में कॉमर्शियल उद्देश्य के लिए पोर्नोग्राफिक सामग्री का स्टोरेज करने पर सजा का प्रावधान किया गया है। इस अपराध के लिए तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों की सजा हो सकती है। यह बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है। इस बिल के अनुसार इस अपराध के लिए तीन से पाँच वर्ष तक की सजा हो सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। इसके अतिरित्तफ़ बिल में बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक सामग्री के स्टोरेज से जुड़े दो और अपराधों को जोड़ा गया है। इनमें (i) बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक सामग्री को नष्ट, डिलीट या रिपोर्ट करने में असफलता और (ii) ऐसी किसी सामग्री को ट्रांसमिट, प्रचारित या प्रबंधित करना (ऐसा सिर्फ अथॉरिटीज को रिपोर्ट करने के उद्देश्य से किया जा सकता है) शामिल है।

बाल यौन शोषण हेतु सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

  • उच्चतम न्यायालय ने सभी जिलों में बाल यौन शोषण के मुकदमों के लिए केंद्र से वित्तपोषित विशेष अदालतें गठित करने का आदेश दिया है। ये अदालतें उन जिलों में गठित की जाएंगी जहाँ यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून (पॉक्सो) के तहत 100 या इससे अधिक मुकदमे लंबित हैं।
  • प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया है कि पॉक्सो के तहत मुकदमों की सुनवाई के लिए इन अदालतों का गठन 60 दिन के भीतर किया जाए। इन अदालतों में सिर्फ पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की ही सुनवाई होगी।
  • पीठ ने कहा कि केंद्र पॉक्सो कानून से संबंधित मामलों को देखने के लिए अभियोजकों और सहायक कार्मिकों को संवेदनशील बनाएं तथा उन्हें प्रशिक्षित करे। न्यायालय ने राज्यों के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ऐसे सभी मामलों में समय से फॉरेंसिक रिपोर्ट पेश की जाए।
  • पीठ ने केंद्र को इस आदेश पर अमल की प्रगति के बारे में 30 दिन के भीतर रिपोर्ट पेश करने और पॉक्सो अदालतों के गठन और अभियोजकों की नियुत्तिफ़ के लिए धन उपलब्ध कराने को कहा है।
  • देश में बच्चों के साथ हो रही यौन हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि पर स्वतः संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने इस प्रकरण को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।
  • शीर्ष अदालत ने कहा कि बच्चों के बलात्कार के मामलों के और अधिक राष्ट्रव्यापी आँकड़े एकत्र करने से पॉक्सो कानून के अमल में विलंब होगा।
  • पॉक्सो से संबंधित मामलों की जाँच तेजी से करने के लिए प्रत्येक जिले में फॉरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने संबंधी न्याय मित्र वी. गिरि के सुझाव पर पीठ ने कहा कि इसे लेकर इंतजार किया जा सकता है और इस बीच, राज्य सरकारें यह सुनिश्चत करेंगी कि ऐसी रिपोर्ट समय के भीतर पेश हो ताकि इन मुकदमे की सुनवाई तेजी से पूरी हो सके।

सरकारी प्रयास

गौरतलब है कि कानूनी मोर्चों के अलावा अलग-अलग स्तर पर भी पहल करने की सख्त जरूरत है, जो संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरे। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(3) राज्य को बच्चों के हित की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है क्योंकि ये माना जाता है कि बच्चे छोटी उम्र और दूसरों पर निर्भरता की वजह से समाज में अन्य लोगों की तुलना में कमजोर होते हैं। इसके अलावा संविधान में बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य को कुछ निर्देश भी दिए गए हैं- अनुच्छेद 39(घ) में राज्य पर यह जिम्मा डाला गया है कि वह बच्चों और युवाओं को सभी तरह के शोषण से बचाएँ।

अनुच्छेद 39(च) के अनुसार, राज्य द्वारा बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएं और बालकों एवं अल्पवयस्क व्यक्तियों के शोषण तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।

संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार संविदा के अनुच्छेद 3 के मुताबिक परिवार, स्कूल, स्वास्थ्य संस्थाओं और सरकार पर बच्चों के हित को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इस संविदा के अनुच्छेद 5 के मुताबिक 0-18 वर्ष के बच्चों के माता-पिता, अन्य परिवारजन और परिवारोत्तर संस्थाओं का दायित्व है कि वे बच्चों की उभरती क्षमताओं का सम्मान करें और इसके अनुच्छेद 12 के अनुसार बच्चे शैक्षणिक, कामकाजी और सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करें।

साथ ही इस संविदा के अनुच्छेद 18 के अनुसार, परिवार, समाज, राज्य और अन्य संस्थाओं की यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को शारीरिक और मानसिक हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण जिसमें यौन शोषण भी शामिल है, से रक्षा करें।

आगे की राह

इस संशोधन से इस अधिनियम में कठोर दंड देने के प्रावधानों को शामिल करने के कारण बाल यौन अपराध की प्रवृति को रोकने में सहायता मिलने की उम्मीद है। इससे प्राकृतिक आपदा के समय निरीह बच्चों के हित का संरक्षण होगा और उनकी सुरक्षा और मर्यादा सुनिश्चित होगी। इस संशोधन का उद्देश्य यौन अपराध और दंड के पहलुओं के संबंध में स्पष्टता स्थापित करना है। सरकार अपनी विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से इस बात को प्रोत्साहन दे रही है कि बच्चे अपने खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के बारे में निडर होकर शिकायत करें और अपने अभिभावकों को बता सकें। अकसर ये देखा जाता है कि बच्चियों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों की शिकायत तो की जाती है लेकिन बच्चे (Male Child) के खिलाफ यौन अपराधों के मामले में शिकायत नहीं की जाती। इस विधेयक के जरिए कानून को ‘जेंडर न्यूट्रल’ बनाया जा रहा है जो अच्छा कदम हो सकता है।

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